HomeFeatures'खिलाड़ियों के सपनों की नीलामी', मेडल्स बेचने के पीछे क्या है वजह?

‘खिलाड़ियों के सपनों की नीलामी’, मेडल्स बेचने के पीछे क्या है वजह?

दुनिया के हर एथलीट का सपना होता है, उसका अपना मेडल. Medal जीतना ही उसके हर सपने के पूरे होने जैसा है. फिर ये मेडल उसकी ज़िंदगी की ऐसी धऱोहर बन जाता है जिसे वो ताउम्र अपने दिल से लगा कर रखता है. लेकिन सोचिए! अगर किसी वजह से उन्हें अपना मेडल बेचना पड़ जाए तो? तब वो दर्दनाक पल उनके सबसे खूबसूरत सपने के टूटने के जैसा होता है. दुनिया के कई महान खिलाड़ियों ने मेडल्स जीतने के लिए फील्ड में जान लगा दी लेकिन फील्ड के बाहर, कभी अपनी निजी परेशानयों के चलते या कभी किसी की मदद करने के लिए, उन्हें अपने मेडल्स को नीलाम करना पड़ा. अपनी किसी मजबूरी की वजह से अपने मेडल की बोली लगाना! इससे ज़्यादा दु:खद क्या होगा किसी खिलाड़ी के लिए? किसी की मदद के लिए मेडल की नीलामी हो तो बात समझ आती है, मगर ज़िंदगी के हाथों मजबूर होकर अगर किसी खिलाड़ी को अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि को कौड़ियों के भाव पर बेचना पड़ जाए, तो ये सोच कर भी दिल दुखता है. मगर ऐसा हुआ है और इस लिस्ट में कई नाम शामिल हैं.

1980 में अमेरिका को आइस हॉकी में Gold Medal दिलाने वाले मार्क वेल्स (Mark Wells) के जीवन में एक समय ऐसा आया जब उन्हें अपना गोल्ड मेडल बेचना पड़ा. साल 2010 में, अपना मेडिकल बिल चुकाने और अपनी सर्जरी के लिए पैसा इकट्ठा करने के लिए, मार्क वेल्स को अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि को नीलाम करना पड़ा. मार्क वेल्स ने अपना मेडल एक शख्स को 40 हज़ार डॉलर में बेच दिया. बाद में उसी व्यक्ति ने इस मेडल को 3,10,700 डॉलर में नीलाम किया. मार्क वेल्स एक ऐसी जेनेटिक बीमारी के शिकार थे जिससे उनकी रीढ़ की हड्डी हर बीतते दिन के साथ कमजोर हो रही थी. इस गंभीर बीमारी के इलाज में बेतहाशा ख़र्च हो रहा था और उसके लिए उन्हें मजबूरी में ये कदम उठाना पड़ा.

मार्क वेल्स अमेरिका में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में मशहूर थे. 1980 में हुई मिरेकल ऑन आइस (Miracle on Ice) नाम की एक घटना आज भी पूरी दुनिया के खेल प्रेमियों को याद होगी जब अमेरिकी टीम ने, रूस को आइस हॉकी में हराकर, इतिहास रच दिया था. इस जीत से गोल्ड मेडल अमेरिका की झोली में आ गिरा था. इस अप्रत्याशित जीत के हीरो बने थे मार्क वेल्स. क्योंकि  इस मैच से पहले, अमेरिका सोवियत संघ से एक मैच 10-3 से हार चुकी थी. ऐसे में ये मैच जीतना किसी चमत्कार से कम नहीं था. इसीलिए इसे ‘Miracle on Ice ‘ यानि ‘बर्फ़ पर हुए चमत्कार’ के नाम से जाना जाता है.

मार्क वेल्स की तरह ही 1980 में आइस हॉकी में गोल्ड जीतने वाली अमेरिकी टीम का हिस्सा रहे मार्क पेवलिक (Mark Pavelich) को भी अपना गोल्ड मेडल बेचना पड़ा था. अप्रैल 2014 में, उन्होंने एक ऑक्शन हाउस के जरिए बाकायदा इसकी नीलामी कराई थी. इस नीलामी के ज़रिए उन्होंने अपने परिवार की ज़रूरत के लिए लगभग 2,62,000 डॉलर जुटाए थे. बाद में उन्होंने बताया था कि वो अपनी बेटी के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए ऐसा कर रहे हैं. अपनी बेटी की आगे की पढ़ाई और दूसरे कामों के लिए उन्होंने इस रक़म का इस्तेमाल किया.

अमेरिकी तैराक ग्रेग लूगानिस (Greg Louganis) ने 1984 में हुए Los Angeles Olympic Games में उन्होंने 2 गोल्ड मेडल जीते थे. इसके 4 साल बाद, 1988 Seol Olympics में, उन्होंने अपनी इसी उपलब्धि को एक बार फिर दोहराया. वहां भी 2 गोल्ड मेडल जीतने के बाद वो दुनिया के नंबर वन तैराक बन गए थे. लेकिन बाद में जब उनकी माली हालत बहुत खराब हो गई, तो उन्हें अपना घर तक बेचना पड़ा. घर बेचने से पहले ग्रेग अपने सारे मेडल्स बेचना चाहते थे ताकि उन्हें अपनी जिंदगी जीने के लिए कुछ पैसे मिल जाएं. लेकिन उन्हें तब इनका कोई खरीदार नहीं मिला और फिर उन्हे अपना घर बेचकर काम चलाना पड़ा.

ऐसा नहीं है कि सभी खिलाड़ियों ने मजबूरी में ही अपने मेडल्स की नीलामी की. कुछ खिलाड़ी ऐसे भी हैं जिन्होंने, दूसरों की मदद करने के लिए या चैरिटी के लिए, अपने गोल्ड मेडल्स को नीलाम किया. यूक्रेन के बॉक्सिंग चैंपियन ब्लादिमीर क्लिशको (Wladimir Klitschko) ने, 1996 Atlanta Olympics में, गोल्ड मेडल जीता था. उन्होंने भी बाद में अपने मेडल को नीलाम किया था लेकिन एक चैरिटी के लिए. ब्लादिमीर क्लिशको ने, खेलों के प्रति बच्चों को प्रोत्साहन देने के लिए, अपने मेडल को बेचा था जिसकी हर ओर सराहना हुई. ‘क्लिशको ब्रदर्स’ (Klitschko Brothers) नाम के अपने संगठन के लिए उन्होंने नीलामी से 1 मिलियन डॉलर इकट्ठा किए थे. वहीं अमेरिका के मशहूर तैराक एंथनी इरविन (Anthony Ervin) ने सन 2000 में, Sydney Summer Olympics में, 50 मीटर फ्री स्टाइल में गोल्ड मेडल जीता था. बाद में उन्होंने, ई-बे साइट के जरिए अपने मेडल को बेच कर 17,101 डॉलर इकट्ठे किए थे. इन पैसों को उन्होंने सुनामी पीड़ितों को दान कर दिया था.

पोलैंड के खिलाड़ी पिओत्र मालाचोवस्की (Piotr Malachowski) ने Rio Olympics में डिस्कस थ्रो का सिल्वर मेडल जीता था. लेकिन जब एक 3 साल के बच्चे ओलेक सिमनास्की (Olek Szymanski) की मां ने उसके इलाज के लिए मदद मांगी, तो पिओत्र खुशी-खुशी अपने मेडल को नीलाम करने के लिए तैयार हो गए. मालाचोवस्की ने कहा कि ओलंपिक में सबसे कीमती गोल्ड मेडल होता है. मैंने इसे पाने के लिए सब कुछ किया, पर मैं गोल्ड नहीं जीत पाया. लेकिन भाग्य ने मुझे मेरे सिल्वर मेडल की कीमत बढ़ाने का एक मौका दिया है. एक हफ्ते पहले तक मेरा ये मेडल मेरे लिए बहुत मायने रखता था लेकिन अब, ये ओलेक सिमनास्की के इलाज में काम आएगा. ओलेक सिमनास्की आंख के कैंसर से पीड़ित था, नीलामी से आए पैसे से इस बच्चे का न्यूयार्क में इलाज हुआ.

2004 में हुए Athens Olympics में ओटिलिया जेद्रज़ेज़क (Otylia Jedrzejczak) ने गोल्ड मेडल जीता था. ओटिलिया पोलैंड की पहली ऐसी तैराक थी जिन्होंने स्विमिंग में गोल्ड मेडल जीता था. यह गोल्ड उन्होंने 200 मीटर बटरफ्लाई प्रतियोगिता में जीता था. लेकिन ल्यूकीमिया से ग्रस्त बच्चों की मदद के लिए उन्होंने अपना गोल्ड मेडल नीलाम किया था. इससे उन्हें कुल मिलाकर 80,000 डॉलर मिले थे.

ओलंपिक खेलों के लिए दिए जाने वाले मेडल्स में अगर हम गोल्ड मेडल की बात करें तो इसी असल कीमत 950 डॉलर के आसपास होती है. लेकिन जब इनकी नीलामी होती है तब इनकी कीमत हज़ार गुना तक बढ़ जाती है. खेलों की दुनिया में मेडल की नीलामी का चलन बहुत पुराना है. नीलामी के समय मेडल की कीमत क्या होगी ये कई बातों पर निर्भर करता है. पहली बात कि मेडल किस कैटेगरी का है. गोल्ड है, सिल्वर है या फिर वो ब्रॉंज़ मेडल है. दूसरी बात ये कि खिलाड़ी कितना पॉपुलर है. खिलाड़ी जितना मशहूर होगा, नीलामी की रकम भी उतनी ही बड़ी होगी. जैसे जिमनास्ट सिमोन बाइल्स (Simone Biles), तैराक माइकल फेल्प्स (Michael Phelps) और धावक उसेन बोल्ट (Usain Bolt) के मेडल्स की नीलामी की रकम कितनी ज्यादा होगी इसका अंदाज़ा तो ख़ुद नीलामी हाउस तक नहीं लगा सकते हैं. और तीसरी बात ये, कि अगर मेडल किसी ऐतिहासिक पल या रिकॉर्ड से जुड़ा है, तब तो उसकी नीलामी में छप्पर-फाड़ रकम मिलती है…

ऐतिहासिक पलों के गवाह बने मेडल्स की नीलामी रकम भी बहुत ज्यादा होती है. जैसे साल 1936 में Berlin Olympics में जीते गए महान धावक जे.सी. ओवेन्स (J.C. Owens) के मेडल्स. जो उन्होंने हिटलर के सामने जीते थे. तो उनके मेडल्स के साथ एक तमगा ये भी जुड़ा था कि उन्होंने ये मेडल्स, इतिहास के सबसे बड़े डिक्टेटर, हिटलर के सामने जीते थे. 2013 में, ओवेन्स का एक पदक लगभग 1.5 मिलियन डॉलर की रिकॉर्ड कीमत पर बिका था. ‘मिरेकल ऑन आइस’ (Miracle On Ice), यानि 1980 में सोवियत संघ पर USA हॉकी की जीत, जो खेलों की दुनिया में किसी चमत्कार से कम नहीं थी, इससे जुड़े मेडल्स की कीमत बहुत ज्यादा है. अगर किसी चैरिटी के लिए मेडल की नीलामी हो रही है तब भी उसकी कीमत और बढ़ जाती है.

मेडल जीतने खिलाड़ियों को उनकी सरकार और फेडरेशन से तो इनाम मिलता ही है, वर्ल्ड फेडरेशन से भी भारी- भरकम धनराशि मिलती है. ओलंपिक संघ के साथ-साथ खिलाड़ियों को, उनके खेल से जुड़ी वर्ल्ड फेडरेशन भी प्रोत्साहित करती हैं. लेकिन कभी-कभी खिलाड़ियों के लिए हालात ऐसे बन जाते हैं, कि उन्हें अपनी जिंदगी की सबसे खूबसूरत सबसे क़ीमती चीज भी बेचनी पड़ जाती है जिसका दर्द लफ़्ज़ों में बयान करना बेहद मुश्किल है.

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